ध्यान क्या है
ये सारी दुनिया, नशे में आबाद
दिखता नहीं मुझे एक भी अपवाद
हर किसी पर छाया है कोई न कोई नशा
बना दी है इसने दुनिया की ये दशा
जाने कितने मादक द्रव्यों का नशा
छाया है किसी पर, शराब का नशा
किसी पर चरस, भांग का नशा
जुए का किसी पर तो, किसी पर सट्टे का नशा
नशों का क्या ......?
लंबी सूची है नशों की
कामी पर काम का नशा, क्रोधी पर क्रोध का नशा
लोभी पर लोभ का नशा,धनी पर धन का नशा
माँ पर औलाद का नशा,पिता पर मर्दानगी का नशा
जवान पर जवानी का नशा, स्त्री पर रूप का नशा
बूढों पर समझदारी का, बुद्धिमानो पर बुद्धिका नशा
साहित्यकारों पर साहित्य का नशा
योगी पर ध्यान का नशा,भक्तों पर राम का नशा
जिसको भी देख भोग रहा है नशा नशा नशा
सभी डूबे नजर आते है,
जिधर देखो नशे के समन्दर लहराते है
सब जानते है की नशे तोड़ते है
मनुष्य का मनुष्यता से मुँह मोड़ते है
पर ........................!
नशेडी के लिए नशा ही प्यार है,वही उसका संसार है
उसे बस नशे से प्यार है
सब जानते है कि सब नशे पहले या बाद में
कर देते है बर्बादी
पर एक नशा है केवल जो लाता है आबादी
सब नशे लायेंगे खीज, झल्लाहट, दिवालियापन
पर एक नशा लायेगा दीवानापन
सब नशे बनायेंगे रोगी
पर वो नशा तुम्हे बनाएगा योगी
बाकि नशे समाप्ति पर, देंगे तनाव, रोग
ताने, अपमान, दुराव, और बिखराव
दुश्मनी लम्पटता और धोखा
पर एक नशा तुम्हे देगा संतोष,एक कसक
उमंग जोश और चाव अनौखा
अन्य नशों की तरह इसके समाप्त होने का डर नहीं
और नशों की लत तोड़ देती है अन्दर से
पर इस नशे की लत जोड़ देती है अन्दर से
और नशों की लत ला देती है विकृति
पर इसकी लत बना देती है आकृति
और नशे लपेट देते है दुनिया में
पर ये नशा उधेड़ देता है दुनिया से
और सारे नशे हमे सिखाते है लूटना
पर ये नशा हमे सिखाता है लुटाना
और सारे नशे बनाते है आदमी को दानव
पर ये नशा उसे बनता है महामानव
और नशों के समाप्त होने पर आता है पछतावा
पर इसके समाप्त होने पर आता है प्रभु बुलावा
और नशे समय और उम्र के साथ घटते जाते है
पर पूर्ण हो गुरुदेव तो
ये नशा बढ़ता जाता है बढ़ता जाता है
बढ़कर मस्त कर देता है मग्न कर देता है
सच कहूँ तो दुनिया से चित भंग कर देता है
लोलुपता मिटा देता है, माया के आवरण हटा देता है
पदार्थों की क्या उपियोगिता है ? समझा देता है
भोतिकता का पागलपन मिटा देता है
क्या काम आना है, क्या छूट जाना है
सब सिखा देता है |
पर सावधान अरे इन्सान
इसकी झलकियाँ आने पर भी
पुन: पुन: आता है भ्रमजाल
पुन: पुन: फ़ैल जाता है माया का अंधकार
घेर लेता है मानव को तिमिर, उसी तरह
शमशान से लौटने पर ज्यों माया का पराभाव
अक्सर पूछा करते है मुझसे लोग.........
तूने विवाह क्यों नहीं किया ?
मैं बस इतना कहा करता हूँ
न मुझसे समझाया जायेगा,
न तुम्हारी समझ में आएगा
और सारे नशों के साथ मैंने देखा है वो अद्भुत नशा
भारतीयता कहती जिसे ध्यान,
कबीर कहते जिसे राम खुमारी
मीरा नरसी कहते जिसको बांकेबिहारी
कोई कहता मीठा गुड उसको
कोई कहता है अहं ब्रह्मास्मि जिसको,
कोई कहता तुम ही हो, और भी जाने क्या क्या ?
इससे अधिक कुछ न बता सकूंगा
क्योंकि अधिक कहने का अर्थ होगा दिखावा
और ध्यान वह है
जहाँ ऋषि बैठ जाते है, वाणी बंद हो जाती है
शब्द समाप्त हो जाते है, शास्त्र मौन हो जाते है
फिर मेरी क्या औकात
जो तुम्हे बता सकूं की ध्यान क्या है ?