गुरुवार, 22 जून 2023

 ध्यान क्या है 




ये सारी दुनिया, नशे में आबाद 

दिखता नहीं मुझे एक भी अपवाद 

हर किसी पर छाया है कोई न कोई नशा

बना दी है इसने दुनिया की ये दशा

जाने कितने मादक द्रव्यों का नशा 

छाया है किसी पर, शराब का नशा 

किसी पर चरस, भांग का नशा 

जुए का किसी पर तो, किसी पर सट्टे का नशा 

नशों का क्या ......? 

लंबी सूची है नशों की 

कामी पर काम का नशा, क्रोधी पर क्रोध का नशा

लोभी पर लोभ का नशा,धनी पर धन का नशा 

माँ पर औलाद का नशा,पिता पर मर्दानगी का नशा 

जवान पर जवानी का नशा, स्त्री पर रूप का नशा 

बूढों पर समझदारी का, बुद्धिमानो पर बुद्धिका नशा 

साहित्यकारों पर साहित्य का नशा 

योगी पर ध्यान का नशा,भक्तों पर राम का नशा 

जिसको भी देख भोग रहा है नशा नशा नशा 

सभी डूबे नजर आते है,

जिधर देखो नशे के समन्दर लहराते है   

सब जानते है की नशे तोड़ते है 

मनुष्य का मनुष्यता से मुँह मोड़ते है 

पर ........................!

नशेडी के लिए नशा ही प्यार है,वही उसका संसार है 

उसे बस नशे से प्यार है 

सब जानते है कि सब नशे पहले या बाद में 

कर देते है बर्बादी 

पर एक नशा है केवल जो लाता है आबादी 

सब नशे लायेंगे खीज, झल्लाहट, दिवालियापन 

पर एक नशा लायेगा दीवानापन

सब नशे बनायेंगे रोगी 

पर वो नशा तुम्हे बनाएगा योगी 

बाकि नशे समाप्ति पर, देंगे तनाव, रोग 

ताने, अपमान, दुराव, और बिखराव  

 दुश्मनी लम्पटता और धोखा 

पर एक नशा तुम्हे देगा संतोष,एक कसक 

उमंग जोश और चाव अनौखा 

अन्य नशों की तरह इसके समाप्त होने का डर नहीं 

 और नशों की लत तोड़ देती है अन्दर से 

पर इस नशे की लत जोड़ देती है अन्दर से 

और नशों की लत ला देती है विकृति 

पर इसकी लत बना देती है आकृति 

और नशे लपेट देते है दुनिया में 

पर ये नशा उधेड़ देता है दुनिया से 

और सारे नशे हमे सिखाते है लूटना 

पर ये नशा हमे सिखाता है लुटाना  

और सारे नशे बनाते है आदमी को दानव 

पर ये नशा उसे बनता है महामानव 

और नशों के समाप्त होने पर आता है पछतावा 

पर इसके समाप्त होने पर आता है प्रभु बुलावा 

और नशे समय और उम्र के साथ घटते जाते है 

पर पूर्ण हो गुरुदेव तो 

ये नशा बढ़ता जाता है बढ़ता जाता है 

बढ़कर मस्त कर देता है मग्न कर देता है 

सच कहूँ तो दुनिया से चित भंग कर देता है 

लोलुपता मिटा देता है, माया के आवरण हटा देता है 

पदार्थों की क्या उपियोगिता है ? समझा देता है 

भोतिकता का पागलपन मिटा देता है 

क्या काम आना है, क्या छूट जाना है 

सब सिखा देता है |

पर सावधान अरे इन्सान

इसकी झलकियाँ आने पर भी 

पुन: पुन: आता है भ्रमजाल 

पुन: पुन: फ़ैल जाता है माया का अंधकार

घेर लेता है मानव को तिमिर, उसी तरह 

शमशान से लौटने पर ज्यों माया का पराभाव 

अक्सर पूछा करते है मुझसे लोग......... 

तूने विवाह क्यों नहीं किया ?

मैं बस इतना कहा करता हूँ 

न मुझसे समझाया जायेगा,

न तुम्हारी समझ में आएगा 

और सारे नशों के साथ मैंने देखा है वो अद्भुत नशा 

भारतीयता कहती जिसे ध्यान, 

कबीर कहते जिसे राम खुमारी

मीरा नरसी कहते जिसको बांकेबिहारी  

कोई कहता मीठा गुड उसको 

कोई कहता है अहं ब्रह्मास्मि जिसको, 

कोई कहता तुम ही हो, और भी जाने क्या क्या ?

इससे अधिक कुछ न बता सकूंगा 

क्योंकि अधिक कहने का अर्थ होगा दिखावा 

और ध्यान वह है 

जहाँ ऋषि बैठ जाते है, वाणी बंद हो जाती है 

शब्द समाप्त हो जाते है, शास्त्र मौन हो जाते है 

फिर मेरी क्या औकात 

जो तुम्हे बता सकूं की ध्यान क्या है ? 



 


बुधवार, 14 जून 2023

                                                  एक पिता का पैगाम  

                                                 भाग जाने वालो के नाम  

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पिता होकर भी मै कितना नादान हूँ जो जान ही न सका, मेरी संताने जवान भी हो गई है, मै तो सदा समझता रहा कि तुम अभी बच्चे हो तुम्हारे बड़े होने का पता तब चला जब तुम 18 व् 21 वर्ष के होते ही घर छोड़कर भाग गये और मुझे भटकना पड़ा दर-दर तुम्हे ढूँढने की खातिर वरना मै तो समझ रहा था की तुम अभी बालक हो, नादान हो, तुम्हारे अंदर अभी दुनिया दारी की समझ कहाँ, तुम्हारे भाग जाने की खबर जब तुम्हारी माँ ने मुझे बताई तो मुझे उस जज की बुद्धि पर तरस आया जो कुछ दिन पहले कह रहा था की लड़कियों की उम्र विवाह के लिए अब 18 की बजाय 21 वर्ष कर देनी चाहिए क्योकि 18 वर्ष की लडकी में वह परिपक्वता नहीं आ पाती तथा वह विवाह जैसी जिम्मेदारी नहीं उठा सकती, जज साहब देखिये मेरी बेटी 18 वर्ष तथा १ दिन की होते ही कितनी समझदार हो गई है वह अपना भला बुरा जान गई है आप कहते हो की अभी वह समझदार नहीं है, मुझे भी नहीं पता, वे सारी  बाते तो वो आज से ही जान गई है .मै जानता हूँ बेटे की लोकतंत्र में सबको अपनी मर्जी से जीने का अधिकार है, माता पिता को हो न हो पर बच्चों को जरूर है ,व्यस्क व्यक्ति अपनी जिन्दगी के फैसले खुद ले सकता है और तूने भी ले लिया है पर तुम्हारे फैसले ने मेरे सामने एक नई समस्या खड़ी कर दी है. तेरे अपनी मर्जी से जीने के फैसले ने मेरे अन्य बच्चों के जीवन को ग्रहण लगा दिया है मुझे इस बात की चिंता नहीं की लोग क्या कहते है, पर अब छुटकी के विवाह के लिए जिस भी घर जाता हूँ,पूछते है की तेरे कितने बच्चे है तो मै कहता हूँ की चार, फिर सब पूछते है क्या क्या करते है तो मै कहता हूँ की बडके ने अपनी मर्जी का जीवन चुन लिया वो घर से किसी के साथ भाग गया अब पता नहीं कहाँ है, तो सब मुझे नमस्कार कर देते है ,तंग आकर मैंने छुटकी को कह दिया है की तू भी बड़के की तरह भाग जा किसी के साथ पर वह जिद पर अड़ी है की नहीं विवाह करूंगी तो  रीती से नहीं तो ऐसे ही रहूंगी जब भाई अपनी मर्जी से जी सकता है तो मै क्यों नहीं जी सकती, भाई की ऐसी मर्जी है मेरी ऐसी, फिर हार कर मै नये घर जाता हूँ तो लोग पूछते है तेरा बेटा किसके साथ गया है क्या गोत्र है, क्या जाति है, क्या खांप है, कहाँ की है आदि आदि इतने प्रश्न की मै बेहोश हो जाता हूँ. 

 पर तू चिंता मत कर तू अपनी मर्जी से जी. 

छुटकी है की जिद नहीं छोडती की विवाह भारतीय रीती से ही करूंगी ,अच्छा जरा उससे पूछ कर बता जिसके साथ तू भागी है क्योंकि तुम तो समझदारी के सागर हो, तुमने सोच समझकर ही ये काम किया है फिर भला तुम से ज्यादा समझदार इस दुनिया में कौन हो सकता है .जिसके साथ तू भागी है उसके भी घर वालो ने इसी समस्या से पार पाया होगा ,सो बेटा जरा पूछ कर बता की मै क्या करूं,  

पर तू ज्यादा चिंता मत कर तू अपनी मर्जी से जी. 

अरी मेरी बेटी जब छोटू के रिश्ते वाले आये थे तो उन्होंने पुछा की बडकी कहाँ ब्याही है ,मैंने बताया की बडकी तो ज्ञान का सागर थी अपनी मर्जी से जीवन साथी चुन लिया और चैन से जी रही है, तो वे हल्के मुस्कराए और नमस्कार कर बोले अच्छा चलते है,तुम्हारा घर तो ज्ञान का ब्रह्मांड है, इतने ज्ञानियों के साथ हम नहीं चल सकेंगे हमारी बेटी जरा कम ज्ञानी है , जब भी मै बाहर जाता हूँ तो कुछ नहीं होता बस मिलने वाले हल्के से हँस देते है, अच्छा तू जरा उससे पूछ जिसके साथ तू भागी उसके घर वाले लोगों से कैसे मिलते है क्योकि जैसे तू ज्ञान का सागर है वो भी तो पांडित्य से भरपूर होगा, क्योकि ज्ञान का स्तर समान होने पर ही तो लोगो का मेल जोल पक्का होता है सो अपने ज्ञानकोष से कुछ समाज के लिए भी दो, ऐसी ही जाने कितनी बातो से हमें दो चार होना पड़ता है.  

पर तू चिंता मत कर अपनी मर्जी से जी.  

संविधान से मेरी प्रार्थना है की वह उन सब लोगों को भी समझाएँ की भाई देखो सबको अपनी मर्जी से जीने का अधिकार है तुम छुटकी का रिश्ता ले लो और छोटू की सगाई हो जाने दो तुम्हे जो करना है उसके पिता के साथ करो क्योंकि गलती पिता की है, बच्चों की क्या गलती है ,बच्चे तो फिर बच्चे है, जो भी गलती है पिता की है उसका पिता होना ही अपराध है ,वो पिता हुआ ही क्यों, उसे पिता होने का दंड दो, बच्चों को बक्स दो . 

पर तू चिंता मत कर अपनी मर्जी से जी.  

और बाकि घर वाले है न सब पागल है ,ये मिन्नू ,टिन्नू, दादा ,दादी बुआ ,मामी, चुटकी जो खाना नहीं खाते है तू इनके पागलपन पर मत जाना,  

तू अपनी मर्जी से जी  

इनकी भूख के लिए भला तुम अपनी खुशियाँ क्यों त्यागो ,पड़ा रहने दो इनको, खायेंगे तो खा लेंगे वरना भूखे पड़े रहेंगे भला मेरा बेटा अपनी मर्जी से क्यों न जिए. तेरी मम्मी तो पूरी पागल है उसके बारे मे तो कभी सोचना ही मत,  माएं तो वैसे भी आधी पागल ही होती है, कितनी बेवकूफ है भला अपने बेटे को अपनी मर्जी से नहीं जीने देना चाहती भूख हड़ताल करे बैठी है उसे कौन समझाये की जिसके लिए तू भूख हड़ताल कर रही है वो सरकार थोड़े ही है जो झुक जाएगी मैंने भी कह दिया है, खाएगी तो खा लेगी वरना मर जाएगी .  

पर तू चिंता न कर तू अपनी मर्जी से जी  

.जिसके साथ तू भगा है ना उस से पूछ कर बता की बाकि घर वालो का क्या करना है ,पड़े रहने दूं या इनको छोड़ दूं या घर से भगा दूं या जबरदस्ती खाना इनके मुहं में ठूस दूं क्योकि जब से तुम गये हो मेरी तो बुद्धि ही कुंद हो गई इसलिए तू और वह समझदार लडकी मिलकर बताओ ,वैसे भी मेरे अन्दर बुद्धि ही कहाँ थी जो काम करेगी .  

बिटिया अब मुझे लगने लगा है की मै खांप पंचायतो की बात मान लेता तो ठीक रहता इसलिए नहीं की लडकी को नहीं पढाना चाहिए, वरन इसलिए की तुझे पढ़ाने के चक्कर में, तेरे जीवन को सवारने के चक्कर में, मै पागलों की तरह कमाता रहा और जान ही न सका की मेरे बेटे बेटियों को पढ़ाई की नहीं, एक दूल्हे की जरूरत है. मै तो समझता रहा की तुम मन ,बुद्धि और आत्मा से पढाई कर रहे हो ,मुझे क्या पता की तुम पढने नहीं, साथी तलाशने जाते हो, तो फिर तुममे और रुढ़िवादियों में क्या फर्क ,तुमने भी वही किया जिसका भय वे दिखा रहे थे. वे यही तो कह रहे थे की इन्हें पढाओगे तो ये ऐसा काम करेंगे, मैंने उनकी कहाँ सुनी, मैंने तुम पर विश्वास किया, और उनसे भीड़ पड़ा कि नहीं मेरे बेटा बेटी ऐसे नहीं है  वे पढना चाहते है, तुम हटते हो या हथियार उठाऊ और मेरे अन्दर के पिता का रोद्र रूप देखकर वे एक तरफ हो लिए, और तुम हो की अपनी मर्जी से जीने को चले गये.  

इसलिए अब मुझे बताओ कौन सही है ? तुम या वे लोग.